मै आज भी कश्मकश में हु,
सो जाता है जहाँ, जागता सूरज
दिन रात , कभी यहाँ कभी वहाँ
वो भी बिना थके, बिना हारे
धरती के जनम से ।
मै सूरज का मुरीद,
और लोग कहे मुझे पागल
सूरज की आज भी पूजा
और मुझे जन्मो की सजा
सब रोशनी से चकाचौंद मुबारक
और मै अंधेरे की आरज़ू में
बेकार का फ़सा पड़ा
सूरज भी रोज़ हँसता
और मै जन्मो का प्यासा कुवाँ
वक्त भी हरामी सूरज का ग़ुलाम
शहेनशाह ए आलम, ज़िंदगी को सलाम
कश्मकश ही जन्नत ए ज़िंदगी
कभी इसको, तो कभी वुसको सलाम
मुबारक *अंजाना*
बढिया हैं भाई 👏👏👏